बांस से बने उपकरणों के साथ तीरंदाजी का अभ्यास करने वाले किसी व्यक्ति के लिए, उसे खेल के शिखर तक पहुंचते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं है, लेकिन महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी ने ऐसा ही किया है।
तीन ओलंपिक प्रदर्शन और विश्व कप, एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप, राष्ट्रमंडल खेलों, विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में पदकों की श्रृंखला के साथ झारखंड के रांची के पास राम चट्टी गांव में एक छोटी सी झोपड़ी से चैंपियन तीरंदाज की कहानी काफी दिलचस्प है।
दीपिका कहती हैं, "मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं कुछ इस तरह से करूं कि मेरी तस्वीरें अखबारों में आ जाएं, और अब वे इस बात से हैरान हैं कि मैं उनसे बड़ी हो गई हूं, जिसकी उन्होंने मुझसे कभी उम्मीद नहीं की थी।"
अपने पिता के एक ऑटो-रिक्शा चालक के रूप में काम करने के साथ, दीपिका कुमारी अपने माता-पिता को अपना पेट भरने के लिए संघर्ष करते हुए देखकर बड़ी हुई हैं। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा संचालित तीरंदाजी अकादमी में शामिल होने में कामयाबी मिलने के बाद भाग्य ने उनका साथ देना शुरू कर दिया। इस अकादमी में वंचित एथलीटों को मुफ्त प्रशिक्षण सुविधाएं और उपकरण दिए जाते थे।
जब वह 15 वर्ष की थी, तब तक दीपिका कुमारी ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहली बड़ी छाप छोड़ दी थी। दीपिका का भविष्य इस खेल में बड़ा आकार लेने जा रहा था।
अगले वर्ष, उन्होंने दो स्वर्ण पदक जीते, जिसमें एक महिला व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा में और दूसरा महिला रिकर्व टीम स्पर्धा में। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने से पहले इस एथलीट ने अपना कद काफी मजबूत कर लिया।
दीपिका कुमारी ने 2012 में तुर्की के अंताल्या में व्यक्तिगत रिकर्व में अपने पहले तीरंदाजी विश्व कप स्वर्ण पदक के लिए बुल्सआई मारा। आपको बता दे कि यह पिछले वर्ष ओग्डेन में विश्व कप में चार रजत पदक के बाद उन्होंने हासिल किया।
उसके बाद उनकी ख्याति दुनिया भर में फैल गई, भारत की उम्मीदों का भार लेकर जब 2012 के लंदन ओलंपिक में वो पहुंची तो उन्होंने दुनिया की नंबर 1 के रूप ओलंपिक में प्रवेश किया। हालांकि बुखार की वजह से उनके खेल पर खासा असर पड़ा और वो पहले दौर में ही बाहर हो गई।
एक झटके के प्रभाव ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया है। क्योंकि युवा तीरंदाज ने महीनों तक अपनी फॉर्म को वापस पाने के लिए काफी संघर्ष किया है। यह संघर्ष 2014 व्रोकला तीरंदाजी विश्व कप तक सीमित नहीं था, जहां दीपिका कुमारी ने टीम इवेंट में महत्वपूर्ण स्वर्ण जीता था। 2015 विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में उपविजेता टीम में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत की।
उन्होंने रियो ओलंपिक में जाने से ठीक पहले अप्रैल 2016 में वूमेंस रिकर्व इवेंट में विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की थी।
हालांकि, दीपिका कुमारी का ओलंपिक सपना रियो में 16वें दौर में ही असफल हो गया, जिससे उनके पहले से ही सजे हुए पदकों के कैबिनेट में ओलंपिक पदक जोड़ने का इंतजार और लंबा हो गया।
दो साल तक खामोश रहने के बाद, दीपिका कुमारी ने 2018 में साल्ट लेक सिटी, यूएसए में तीरंदाजी विश्व कप में अपने अभियान की फिर शुरूआत की, इस जीत ने भारतीय तीरंदाज के लिए मानसिकता में बदलाव को भी चिह्नित किया, जो अपने व्यक्तिगत प्रशिक्षण के दौरान मानसिक कंडीशनिंग कोच के साथ काम कर रही थी।
दीपिका कुमारी ने 2019 एशियाई चैंपियनशिप में वूमेंस और मिक्स्ड टीम में कांस्य जीतकर अपना बेहतरीन प्रदर्शन जारी रखा। इससे पहले कोविड महामारी की वजह से पूरी दुनिया ठहर गई थी।
हालांकि, साल भर के ब्रेक ने उनके खेल की गति को नहीं रोका। क्योंकि दीपिका ने ग्वाटेमाला सिटी में 2021 विश्व कप में एक और स्वर्ण के साथ वापसी की और टोक्यो ओलंपिक से कुछ दिन पहले पेरिस विश्व कप में स्वर्ण के करीब पहुंचीं।
अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर दीपिका कुमारी लगातार तीसरे ओलंपिक में अपनी जगह बनाई और एक बार फिर दुनिया की नंबर 1 तीरंदाज बन गई हैं। उन्होंने बड़े खेलों में अपने पिछले दो प्रदर्शनों से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन इंडिविजुअल और मिक्स्ड टीम इवेंट दोनों के क्वार्टर फाइनल में हार गईं।
भले ही दीपिका कुमारी ने ओलंपिक अभियान में निराशाजनक प्रदर्शन किया। लेकिन इस बात को झूठलाया नहीं जा सकता कि अभी भी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तीरंदाजों में से एक हैं।
उन्हें अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और उन्होंने साथी भारतीय तीरंदाज अतनु दास के साथ शादी की है।